या ख़ुदा ये कैसी अक्ल दी
तूने हम इन्सानों को लड़ते हैं
हम तेरे लिए जो दिखता नहीं है
आंखों को जाने क्या क्या लिख लिया है
हमने तेरे नाम पर कितने नामों से तू बिकता
मज़हब की दुकान पर मंदिर मस्जिद गिरजे बनाए
हमने तेरे रहने को फूल चादरें भी चढ़ाई
तेरा वजूद साबित करने को करते हैं
मनमानी बिना जाने क्या तेरी मर्जी है
जब आपस में प्यार नहीं तो बाकी बातें फर्जी हैं
मिलूंगा मर के तुझसे तो पूछूँगा इसी बात को
या ख़ुदा ये कैसी अक्ल दी तूने हम इन्सानों को
Great Thought
ReplyDeleteNice Thought
ReplyDelete